जीवन का उद्देश्य क्या है? हम अपने मन को विचलित क्यों करते हैं?
मस्तिष्क की प्रकृति पर ध्यान दें । मस्तिष्क क्या करता है ?
यदि दस अच्छे गुण हैं और एक नकारात्मक गुण तो मस्तिष्क उसी नकारात्मक गुण से चिपका रहता है । दस प्रशंसाओं और एक अपमान में - मस्तिष्क सभी दस प्रशंसाओं को भूल जायेगा और एक अपमान को लेकर क्षुब्ध रहेगा; और यह इस प्रकार चलता और चलता रहता हैl क्या ऐसा नहीं ?
मस्तिष्क और क्या करता है ?
यह या तो भूत में जाता है या फिर भविष्य में । हम या तो भूत के बारे में क्रोधित होते हैं या फिर भविष्य के बारे में उत्सुक, क्या ऐसा नहीं है ? क्रोध ऐसी चीज के बारे में होता है जो पहले घटित हो चुका है । अत: इसकी कोई उपयोगिता है ? यदि शीशे का जार गिरता है और टूट जाता है, आप इस पर क्रोधित हो सकते हैं, जब यह घटित हो जाता है: "अरे ! इसे नहीं होना चाहिए था । इसे नहीं होना चाहिए था ।" यह हो चुका है । यह समाप्त हो गया ।अब क्रोधित होने का कोई मतलब नहीं ।
क्रोध का कोई मतलब नहीं क्योंकि यह हमेशा ऐसी वस्तु के बारे में होता है जो पहले ही घटित हो चुका होता है ।
चिंता उस वस्तु के बारे में होती है जो कहीं भविष्य में होती है ," कल क्या होगा ?" आपने इस प्रश्न से पिछले वर्ष भी सामना किया और उसके पहले भी और दस वर्ष पहले भी । आप चिंतित थे - अत: चिंता थी इसके या उसके बारे में : " भविष्य में क्या घटित होगा ?"
लेकिन देखिये सभी चीजें यही थीं । जीवन चल रहा है । क्या ऐसा नहीं है ? थोड़ा पीछे मुड़िये और देखिये कि हमारी सभी चिंतायें निरर्थक थी । वर्तमान में दृष्टि डालें और देखें, हमारे सभी क्रोध भी निरर्थक प्रतीत होते हैं । अत: जब दोनों, चिंता और क्रोध समाप्त हो जाते हैं, मस्तिष्क आनंद से प्रफुल्लित होता है, प्रेम से सरोबार, ऐसी स्थिति जिसे आप प्रेम कह सकते हैं ।
~श्री श्री .
