जिधर आँख उठाकर देखिए संसार मे भिन्न - भिन्न नाना प्रकार की वस्तूए दिखाई पडती है । प्रत्येक वस्तू दुसरी वस्तूओसे कुछ निराली ही है और अपनी स्वतंत्र सत्ता रखती है । इस प्रकार संसार मे अनंत वस्तूए और व्यक्ती है । मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ती संसार का ज्ञान प्राप्त करने की है । ज्ञान प्राप्त का साधन बुद्धी है । बुद्धी का स्वभाव दृश्य, अनंत, नाना और भिन्न पदार्थ मे सादृश्य और एकता को खोजना है । अन्यथा मनुष्य को संसार का ज्ञान होना ही असंभव है । क्योंकि प्रत्येक वस्तू का वैयक्तिक स्वरूप इतना निराला है की उसके अतिरिक्त और कोई उसको न समज ही सकता है और न उसका वर्णन कर सकता है । इसीलिए मनुष्य ने अपने ज्ञान पीपासा को शांत करने के लिए वस्तू के निरालेपन की उपेक्षा करके उनके उस रूप को जानना अपना ध्येय बना लिया है जो की सब वस्तूंओ में एक सा है ।
साधारण ज्ञान , विज्ञान और दर्शन जो की मनुष्य के ज्ञान के तीन प्रस्थान है - सभी का उद्देश अनेकता में एकता , भिन्नता मे समानता और नवीनता में परिचितत्व को खोजना है । साधारण ज्ञान ने सभी वस्तूओ का जातियों में वर्गीकरण करके इस उद्देश्य की पूर्ती की है।
रसायन विज्ञान ने संसार की सभी वस्तूओ को 118 प्रकार के भौतिक तत्त्वो के भिन्न - भिन्न मेलो से बना हुआ समझा। वर्तमान भौतिक विज्ञान की खोज के अनुसार समस्त संसार विद्युत कणो से बना है।
दार्शनिको ने भी अनेकता और भिन्नता को कुछ इसी तरह समानता के रूप मे समझने का प्रयत्न किया है।
ग्रीस देश के दार्शनीक डेमोक्रिट्स ने जगत को समान रूप वाले अनंत परमाणु की ही रचना समझा ।
एम्पिडोकिल्स का कहना है कि संसार मे केवल चार तत्व है पृथ्वी, जल, अग्नी, वायु जो की आकर्षण और विकर्षण के वशीभुत होकर जगत की रचना कर रहे है ।
भारत मे कुछ दार्शनिको के अनुसार संसार मे केवल नौ पदार्थ - पृथ्वी, जल, अग्नी, वायू, आकाश, दिक, काल, मन, और आत्मा है । जगत के सारे पदार्थ इन्ही तत्व से मिलकर बने है।
सांख्य दर्शन के अनुसार जगत मे केवल दो ही तत्व है - प्रकृती और पुरुष । जितने दृश्य पदार्थ है वे सब प्रकृती के रूपांतर अथवा परिणाम है और जितने चेतन - जीव है वे सब दृष्टा पुरुष है ।
मनुष्य की बुद्धी की ज्ञान - पिपासा सारे जगत के अनंत और भिन्न - भिन्न पदार्थ को दो तत्व मे वर्गीकरण करके भी शांत नही हुई।
बुद्धी सदा एकत्व की खोज मे रहती है और बिना एकत्व को प्राप्त किये तृप्त नही होती। बुद्धी की इस एकत्व पिपासा की शांती अद्वैतवाद मे होती है ।
अद्वैतवादियो के मत मे संसार मे दो अथवा बहुत से तत्व नही है। समस्त संसार एकही तत्व का भिन्न-भिन्न रूप मे प्रकट होने का नाम है।
- Firoz Khan (M.A. Yoga)
(Faculty of The Art Of Living)
