बुद्ध का जन्म बुद्ध पूर्णिमा को हुआ था। उन्हें इस दिन आत्म-ज्ञान प्राप्त हुआ, उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ और उनकी मृत्यु भी इसी दिन हुई।
इस, ऐसा लगता है कि चंद्रमा अन्य पूर्णिमा के दिनों की तुलना में 20% अधिक बड़ा है। यह बहुत बड़ा चाँद होता है । इसलिए आपको चंद्रमा को उदय होते हुए देखना चाहिए।
हर किसी में एक नन्हा बुद्ध होता है, और वह बुद्ध सिद्धार्थ के रूप में होता हैं। क्या आप जानते हैं सिद्धार्थ कौन हैं? बुद्ध के बुद्ध बनने से पहले वे सिद्धार्थ थे। वे भटक रहे थे, खो गये थे । उन्होंने सब कुछ करने का प्रयास किया लेकिन वह नहीं मिला; लेकिन उनके पास जिज्ञासा की प्रकृति थी।
उन्होंने कहा, 'संसार सारा दुख ही है और मैं दुख से छुटकारा पाना चाहता हूँ ।' सिद्धार्थ समझ गए कि सब कुछ दुख है, लेकिन उन्हें रास्ता नहीं पता था।
तो सबके भीतर एक नन्हा बुद्ध होता है, बस उसे जागना होता है।
बुद्ध ने यह और वह और ऐसे और वैसे सारे प्रयास कियें । वेे दर-दर भटकते रहें, इस छोर से उस छोर तक ! तकनीक के बाद तकनीक अपनाते रहें, लेकिन कुछ भी काम नहीं आया । क्योंकि यह सब करते हुए उनका मन बाहर की ओर था, और जब वे बीमार हो गये और सब कुछ से थक गये और सब कुछ छोड़ दिया, उसी क्षण उन्हें आत्म-ज्ञान प्राप्त हो गया। इस प्रकार की कहानी कही जाती रही है।
तो, जब वे कड़ी मेहनत और कठिन प्रयास करते-करते थक गये, तो उन्होंने कहा, 'ठीक है, अब मुझे केवल आराम करना है । मैं सब छोड़ता हूँ ।' तो उन्होंने हार मान ली, सब छोड़ दिया और बैठ गए, और उनका मन भीतर की ओर मुड़ा और फिर वे बुद्ध बन गए।
इसलिए मन को भीतर की ओर मोड़ो।
दुर्भाग्य से बुद्ध को कभी कोई गुरु नहीं मिलें। उस समय उन्हें कोई गुरु नहीं मिलें। लेकिन आदि शंकराचार्य के एक गुरु थे। तो वे गुरु से मिले और रास्ता बहुत आसान, सुगम हो गया। वे बस बैठ कर समाधि में जा सकते थे। लेकिन बुद्ध के लिए समाधि में जाना और ध्यान करना संभव नहीं था। यह उनके लिए कठिन था। इसलिए उन्होंने उपवास किया। किसी ने उन्हें उपवास करने के लिए कहा और उन्होंने उपवास किया, क्योंकि वह राजसी परिवार से एक राजा थे और उन्हें समर्पण करना, भक्ति, या जाने देने/ छोड़ देन के बारे में नहीं पता था। करना, करना और करना, उन्होंने यही सुना था, और वे वहीे जानते थे जैसा उन्हें प्रशिक्षित किया गया था। तो बड़ा अहंकार, और वह बड़ा काम, उन्हें कई वर्षों तक इधर-उधर भटकाता रहा।
अंत में उन्होंने हार मान ली और फिर उन्हें आत्म-ज्ञान प्राप्त हुआ; इस तरह कहानी चली आ रही है।
अत: आपके अंदर का जो छोटा दिमाग है वह तुम्हें मुक्त होने नहीं देता, छोड़ने नहीं देता और वह मैं यह करना चाहता हूँ, और मैं करना चाहता हूँ और मैं करना चाहता हूँ कि यात्रा पर निकल पड़ता है । मैं इसे प्राप्त करूँगा और मैं इसे प्राप्त करूँगा, यही सब सोचता रहता है।
जब आप यह देखते हैं, कि प्राप्त करने के लिए क्या है ? तब सब कुछ छूट जाता है, तुम समर्पण कर देते हो, तुम जाने देते हो और ध्यान घटित होता है। तुम्हें पता है, यह एक आयुर्वेदिक मालिश की मेज पर लेटने जैसा है। आप बस मेज पर लेट जाते हैं और बस यही है, आप कुछ नहीं करते । सब कुछ आपके लिए किया जाता है; तो आपका ध्यान अपने आप हो जाएगा। आप बस बैठो और ध्यान हो जाएगा।
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाएँ।

