हमारा जीवन आग की तरह है। जो भी डालो हमारी इंद्रियों की अग्नि मे जल जाता है । विषैले पदार्थ की आग प्रदूषण और दुर्गंध पैदा करती है। लेकिन अगर हम धूप जलाते है तो उससे सुगंध पैदा होती है। वही आग जो जीवन को सहारा देती है, जीवन को नष्ट भी कर सकती है।
अग्नी के आसपास उत्सव भी होता है और मातम भी ।
क्या तुम वो आग हो जो धुआं और प्रदूषण पैदा करती है या कपूर की लौ जो रोशनी और खुशबू पैदा करती है ?
एक शांत और ध्यानी व्यक्ती प्रेम की रोशनी और खुशबू पैदा करता है। जीवन मे, जब हमारी इंद्रियां अच्छाई में लगेंगी, तब हम रोशनी सृजन करेंगे। जब हम अन्यथा नकारात्मकता मे लगे रहते हैं, तो हम स्वयं के लिए दुख पैदा करते हैं ।
हमे बार बार देखते रहना चाहीए हमारी इंद्रिया किसमे लगी है।
यह संयम ही है जो आपके अंदर अग्नि की गुणवत्ता को बदल देता है।
अग्नी के आसपास उत्सव भी होता है और मातम भी ।
क्या तुम वो आग हो जो धुआं और प्रदूषण पैदा करती है या कपूर की लौ जो रोशनी और खुशबू पैदा करती है ?
एक शांत और ध्यानी व्यक्ती प्रेम की रोशनी और खुशबू पैदा करता है। जीवन मे, जब हमारी इंद्रियां अच्छाई में लगेंगी, तब हम रोशनी सृजन करेंगे। जब हम अन्यथा नकारात्मकता मे लगे रहते हैं, तो हम स्वयं के लिए दुख पैदा करते हैं ।
हमे बार बार देखते रहना चाहीए हमारी इंद्रिया किसमे लगी है।
यह संयम ही है जो आपके अंदर अग्नि की गुणवत्ता को बदल देता है।
