जीवन मे सफल होने से बेहतर है जीवन का सार्थक होना।
अपने जीवन को एक उद्देश्य, अर्थ, और खुशी के साथ जीना ज्यादा महत्वपूर्ण है । अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने, अपने क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करने के साथ - साथ जीवन की सार्थकता को समझना भी जरूरी है।
सफलता केवल बाहरी चीजों का मापदंड है, जो हमें आंतरिक संतुष्टि नहीं देती।
सार्थकता हमें अपने स्वरूप को जानने, अपने आप को पहचानने, अपने दायित्वों को निभाने, और औरो की सेवा करने का अवसर देती है।
हमे सफलता के साथ साथ समझदार, संवेदनशील, और दयालु होना भी जरूरी हैं, तभी जीवन सार्थक होगा।
सफलता माने क्या धन, यश, और प्रतिष्ठा, अपने लक्ष्यों को पाना, या फिर अपने क्षेत्र में नाम बनाना किंतु यह सब हासिल होने के बाद भी जीवन मे एक अधूरापन महसूस होता है। यह सब पाकर भी कभी आंतरिक चैन नही मिलता। क्योंकि सफलता तो हासिल कर ली किंतु जीवन की सार्थकता पर ध्यान नही दिया।
सार्थकता तो इसीमे है कि अपने आप को जानना, आत्मतत्त्व को पहेचानना, अपने दायित्वों को निभाना, औरो के लिए उपयोगी बनना, औरो की खुशी का कारण बनना।
जो भी हमारे आस - पास आए वे शांत और प्रसन्न होकर जाए तभी जीवन सार्थक है। हमारे सारे गुण सारी अच्छाई औरो के लिए है यह एहसास ही हमे अपने आप मे सुखी करता है।
जीवन मे सार्थकता बढ़ती है तो अपने अंदर की शक्ति, सामर्थ्य, और संभावनाए विकसित होने लगती हैं। समुदाय, समाज, देश, और दुनिया के प्रति अपना योगदान देने का मार्ग दिखने लगता है। अपने आस-पास के लोगों का सम्मान, सहयोग, और सेवा करने का भाव दृढ़ होने लगता है।
सार्थकता को जानने से जीवन को एक उद्देश्य मील जाता है, जीवन को अर्थ प्राप्त होता है और जीवन को खुशी के साथ जीने का रास्ता खुल जाता है। जीवन एक आनंदसे भरा उपहार लगता हैं।
सार्थकता के महत्व को नकारना असंभव है। सार्थकता ही हमारे जीवन का आधार है। सार्थकता हमारे जीवन को जीने लायक बनाती है।
अपने जीवन को सार्थक बनाना ही जीवन जीने की कला है।
सफलता के पिछे भागते हुए हम जीवन की सार्थकता को भूल जाते है और फिर अवसाद, दुःख और बेचैनी से भर जाते है।
केवल सफलता हमे सुख नही दे सकती इसलिए दोनों का संतुलन रखते हुए हमें आगे बढ़ना चाहिए।
।।जीवन सफल भी हो और सार्थक भी।।

