भारत की गरीबी, गरीबों का भारत
भारत देश की सबसे बड़ी समस्या गरीबी है।इसी गरीबी को राजनीतिक स्वार्थ के लिए सीढ़ी बनाया जाता है। उन्हीं की भलाई का वास्ता देकर चुनाव लड़ें जाते हैं और जीते जाते हैं। गरीबों का शोषण आसानी से किया जा सकता है। उसे आर्थिक गुलाम बनाया जाता है , फिर वह सर उठाकर जी नहीं पाता।अगर समाज में गरीबी,अज्ञान, अंधविश्वास न हो तो उनका शोषण संभव नहीं इसलिए एक षड़यंत्र के तहत गरीबी दूर नहीं की जाती। आर्थिक सबल लोग आपस में हाथ मिला लेते हैं।फिर जैसा चाहे वैसा गरीबों का शोषण करते हैं।
गरीबी और सादगी का सम्मान दिखाते हैं ताकि गरीब अपनी गरीबी के चलते विद्रोही न बने। चौतरफा गरीबों का शोषण किया जाता है मगर उसकी आंखों में
धूल झोंककर। गरीबी हटाने की बात हर राजनीतिक दल करता है, यहीं एक तबका है,जिसे चुनावी नारों में लुभाया जा सकता है।
लोकतंत्र के आने से गरीबों के वोट अहम हो गये। नेताओं के पीछे जो हुजूम होता है,वह गरीबों का होता हैं। गरीबों को दया नहीं,उसका हक देना जरूरी है। स्वाभिमान और सम्मान की जिंदगी वो जिए।ना उसका हक छिने ना उसके हिस्से का छिने।
किसी गरीब को प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति बना देते हैं ताकि यह संदेश मिले कि गरीबी खराब नहीं होती और उसीकी आड़ में सारा खेल चलता है।
किसी शौचालय के उद्घाटन में नेता पहुंचे तो आगे पीछे शेकडों गाडियां रहती है।वो भी आलिशान,एक या दो
संवारी लेकर। कोई सवाल नही करता।गरीब
आंखें फाड़कर देखता हैं मगर कुछ कर नहीं
पाता क्योंकि वह कमजोर है।गरीब रिक्शा में
भी एक सवारी ज्यादा बैठे तो अपराध,कानूनी
कारवाही। पुलिस का डंडा भी उसीपर पड़ता
है।सारा खेल गरीबों के शोषण का हैं। सड़क
गरीब बनाते हैं,उसपर गाडियां अमीरों की दौड़ती हैं। मैं यह नहीं कहता कि तुम अपनी संपत्ति गरीबों में बांट दो।
मैं यह कहता हूं किसंपत्ति आपके पास आयी कहां से है?
स्कूली और महाविद्यालयीन शिक्षा के पाठ्यक्रम में साधु-संतों, महापुरुषों, विचारकोंके आदर्श छात्रों के सामने रखे जाते हैं । हकीकत में कुछ और ही वे देखते हैं।तब सारे पाखंड या ढोंग की पोल खुल जाती है।
समाज के विचारकों , विद्वानों को इनाम,सम्मान या कोई पद या पुरस्कार देकरउसकी ज़बान बंद कर दी जाती है। फिर वहउन्हीं का गुणगान गाकर अपना उल्लू सीधा
कर लेता हैं।
गरीबी की दाहकता बहुत तकलिफदेह होती है।अमीर जमीन पर नजर नहीं आते।वे हवाई
जहाजों में, आलिशान गाड़ियों में दुनिया की
सैर करते हैं।गरीब बेचारा खेत खलिहानों में,
कारखानों में दिन-रात श्रम कर रहा है।कार बनाता है मगर खरीदता नहीं।
गरीबों को मदद करके ही अमीर उनका विश्वास हासिल करते हैं।उनकी सेवा का ढोंग रचाकर समाजसेवी कहलाते।हर तरफ से हर
कोई गरीबों का बचाखुचा खुन चूस रहा है।इतनी कुशलता से कि उसे पता तक नहीं हो रहा है। गरीबों को खाना खिलाकर लोकप्रियता हासिल की जाती है।
गरीबों कोदान देकर तुम दाता कहलाते हो। कोई गरीबोंका मसिहा है तो कोई उनका नेता।हर कोईअपने तरीके से उसका इस्तेमाल कर रहा है।
गरीबी का कारण ढूंढना हो तो अमीरी का कारण ढूंढिए।
देश आजाद हुआ है मगर आर्थिक गुलामी से नहीं। गरीबों के खाते में पांच सौ रुपए डालेजाते हैं तो कितना ढिंढोरा ।
अमीरों के तिजोडीयां विदेशों में ,कोई आहट तक नहीं।
गरीब छटपटा रहा है।पहले राजाओं ने उसका
शोषण किया,अब नेता कर रहें हैं।उसका कोई
मददगार नहीं।
गरीब को यह समझना होगा।बगावत पर उतरना होगा।तभी यह स्थितियां बदलेंगी। वर्ना कोई उम्मीद नहीं बची हैं।
- नारायण खराद
बातम्या
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अगदी चोवीस तास बातम्या पुरवित आहेत.
'ब्रेकिंग न्यूज' ची उत्सुकता कायम असते.
एक बातमी चोवीस तास जर चोवीस चैनल
दाखवत असतील आणि आपण ते बघत असू
तर आपले डोके जागेवर राहिल का?
पुन्हा न्यूज एंकर,"कुठेही जाऊ नका,बघत रहा." अशी सूचना करतात.
श्रीमंत,सत्ताधारी,सिनेमातले हिरो, खेळाडू, उद्योगपती,कुख्यात डॉन यांच्याविषयी माहिती देतात.त्यांची प्रत्येक हालचाल बातमी
होते.ग्रामीण भारत, सामान्य नागरिक त्यांच्या
केंद्रस्थानी नसतो.राजकारणीलोकांच्या रोजच्या कटकटी ऐकून डोके सुन्न होते.अमुकने बंगला घेतला,तमुकने विकला.
त्यांची प्रेमप्रकरणे.त्यांचा आहार,विहार सगळे
काही बातमी बनते.हल्ली कशाचीही बातमी
बनते.आपण जे करतो ते छापून आले पाहिजे
असा अट्टाहास असतो.वर्तमानपत्रांची पाने निरर्थक बातम्यांनी भरलेली असतात.नाली तुंबली ही बातमी होऊ शकते का?
एखाद्या हिरोला सर्दी झाल्याची बातमी येते.
सामान्य माणसे काय या लोकांचे जीवन बघत
बसणार का?
शेती, शेतकरी, शेतमाल , शेतमजूर, बाजार
याविषयी तथाकथित मोठ्या लोकांपर्यंत
पोहचविण्या ऐवजी त्यांचे थाट सामान्य नागरिकांना दाखवले जातात.एक दोन बातम्या चोवीस तास दाखविणे गरजेचे आहे
का? शेंकडों वर्तमानपत्रांची खरंच गरज आहे
का? पर्यावरणाची किती नासाडी होते.
साऱ्या जगाची माहिती मिळवल्याने काय साध्य होते? इतरांचे काय चालले हे बघण्यापेक्षा आपण आपल्या कामात असले
पाहिजे.घरात हेळसांड होत असतांना, अमेरिका आणि चीनचे संबंध कसे दुरावले
याची शहानिशा करण्याची काय गरज?
आपला सरपंच आपल्याला नीट बोलेना आणि अमेरिकन राष्ट्राध्यक्ष काय करतो याची
माहिती घेण्यात काय अर्थ आहे?
वर्तमानपत्र बातमी म्हणून काहीही छापणे.नव्वद टक्के बातम्या या बातम्याच नसतात.सर्वसामान्य दैनिक घडामोडी बातमी
कशी होऊ शकते.हा सारा कचरा डोक्यात
घेतला की डोके बधीर होते.मानसिक स्वास्थ
बिघडते.
"कुठेही जाऊ नका,बघत रहा.. चोवीस तास"
खरंच हे शक्य आहे का, योग्य आहे,गरजेचे आहे का?"
आणि नसेल तर पुढे काय?
ना.रा.खराद,अंबड
