समर्पण कमजोरी का प्रतीक नहीं है, बल्कि शक्ति और स्थिरता का प्रतीक है।
जीवन मे कोई बड़ा लक्ष्य प्राप्त करने के लिए छोटी छोटी चीजो को छोड़ने के लिए सदैव तत्पर रहना ही त्याग है और त्याग के बिना समर्पण नही हो सकता। किसी ऐसे उद्देश्य या व्यक्ति के प्रति समर्पित होते ही सारा भय समाप्त हो जाता है। जिस पर हमारी श्रद्धा और अटूट विश्वास हैं उसके आगे समर्पण अपने आप हो जाता है। समर्पण कोई कृत्य नही जो आप जब चाहे करेंगे बल्कि यह तो अपने आप होने वाली घटना है। जब आप कहते है मुझे समर्पण करना है तब यह नही हो पाएगा , श्रद्धा हो तो ही समर्पण हो सकता है।
हमारा अपना मन, हृदय और हर कृत्य उस उद्देश्य या व्यक्ति के साथ जुड़ा हो तभी समर्पण होता हैं। फिर आपसे हर कार्य ईमानदारी और उत्साह से होता रहेंगा।
रास्ते में आने वाली चुनौतिया और कठिनाइया भी हमे हिला नही सकती। प्रलोभन और आकर्षण हमे विचलित नहीं कर सकते। असफलताओं से हम हतोत्साहित नहीं होते। हम आश्वस्त और आनंद से भरा जीवन जीते है।समर्पण यह एक ऐसा गुण है जिसका जीवन के कई क्षेत्रों, जैसे आध्यात्मिकता, शिक्षा, सामाजिक सेवा और देशभक्ति में अत्यंत आवश्यक है। समर्पित व्यक्ति का हर जगह सम्मान किया जाता है। समर्पण अपने आप को किसी ऐसे उद्देश्य या व्यक्ति के प्रति पूरी तरह से शत-प्रतिशत उसीके लिए होने का नाम है, जिस पर पूर्ण विश्वास और श्रद्धा है।
समर्पण कमजोरी का प्रतीक नहीं है, बल्कि शक्ति और स्थिरता का प्रतीक है। समर्पण के लिए साहस, बलिदान और प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। समर्पण एक महान और सराहनीय गुण है जो किसी व्यक्ति को सफल और खुश बना सकता है। समर्पण दुनिया में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। समर्पण हमें अपने अहंकार, स्वार्थ और मोह पर काबू पाने में मदद करता है। समर्पण हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने और हमारे सपनों को पूरा करने में मदद कर सकता है। समर्पण हमें हमारी वास्तविक क्षमता और उद्देश्य का एहसास कराने में मदद कर सकता है। समर्पण हमें स्वयं से जुड़ने और शांति प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
इसलिए हमें अपने जीवन में समर्पण के गुण को विकसित करना चाहिए।
हमें आभारी और विनम्र होना चाहिए कि हमारे पास कोई ऐसा है जिसके आगे समर्पण हो सकता है। साथ ही सेवा और योगदान करने का अवसर और क्षमता भी हमारे अंदर है। हमें इस बात पर गर्व और खुशी होनी चाहिए कि हमारे जीवन में समर्पण का गुण है।

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