जो इच्छा है उसको पूर्ण करने की क्षमता पैदा करो या फिर जो क्षमता है उसीकी इच्छा करो।
जीवन मे इच्छा और क्षमता दोनो को भलीभांति जानलेना अत्यंत आवश्यक है।
इच्छा और क्षमता दो अलग-अलग शब्द हैं, जिनका अर्थ भी अलग है। इच्छा का मतलब है किसी चीज को पाने की तीव्र लालसा, जबकि क्षमता का मतलब है किसी कार्य को करने की योग्यता या सामर्थ्य।
इच्छा और क्षमता को ठीक से न समझना ही दुःख और अवसाद का कारण है।
बहुत सारी इच्छाए हो सकती है किंतु क्षमता न हो तो इच्छाओं से दुःख ही मिलेगा। इसका उपाय यह हो सकता है की जो इच्छा है उसको पूर्ण करने की क्षमता पैदा करो या फिर जो क्षमता है उसीकी इच्छा करो।
इच्छा का अतिरिक्त होना हानिकारक हो सकता है। इच्छा का अतिरिक्त होना हमें लालची, असंतुष्ट, और असंतुलित बना सकता है। इच्छा का अतिरिक्त होना हमारे स्वास्थ्य, संबंध, और समता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। इच्छा का अतिरिक्त होना हमें अपने आप से और अपने आस-पास की वास्तविकता से दूर ले जा सकता है।
इसलिए, हमें अपनी इच्छाओं को समझना, स्वीकार करना, और नियंत्रित करना चाहिए।
इच्छाओं को त्यागते ही क्षमता बढ़ जाती है। क्षमता हो तो सारी इच्छाएं पूरी हो सकती है। इसीलिए सारी इच्छाए छोड़ने लायक है। इसका अर्थ यह नही की निष्क्रिय हो कर आलसी बन कर पड़े रहना। दोनो के बीच के भेद को समझो जब जब इच्छाएँ बढ़ी दुःख ही मिला, इच्छाओं को त्यागते ही स्वतंत्रता का अनुभव होता है।
क्षमता के बिना इच्छा अधूरी है, क्योंकि क्षमता ही एक व्यक्ति को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक गुणवत्ता और कौशल प्रदान करती है। क्षमता ही एक व्यक्ति को अपने कार्य को आसानी और सफलता के साथ करने की शक्ति देती है। क्षमता ही एक व्यक्ति को अपने सपनों को वास्तविकता में बदलने के लिए आत्मविश्वास और आत्मसम्मान देती है। क्षमता के बिना इच्छा केवल एक ख्वाहिश है, जिसे पूरा करना आसान नहीं है।
इसलिए, इच्छा और क्षमता दोनों ही एक व्यक्तिके जीवन में अनिवार्य हैं, लेकिन इनमें से कोई भी अकेला पर्याप्त नहीं है। एक व्यक्ति को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इन दोनों का संतुलन बनाना होगा। इच्छा और क्षमता का संयोजन ही एक व्यक्ति को अपने जीवन में सफलता और संतुष्टि दिलाता है।
अपनी क्षमताओ को जानो उन्हें और विकसित होने का मौका दो। क्षमताओं को बढ़ाने का अत्यंत प्रभावी साधन है !
सेवा , निरंतर साधना , और सत्य का संग।

